Thursday, January 24, 2019

बदलाव

           बदलाव हो रहा हैं,
       किसी न किसी रूप में।
        जो रिश्तें कभी छाँव थें,
          बदल रहें वो धूप में।।
     सब निकलना चाहतें है आगे,
       प्रतिस्पर्धा के इस दौर में।
       रिश्तें पीछें छुटते जा रहें,
    खुशियाँ ढूंढे हम किस ठौर में।।
      ऑस नहीं किसी को अब,
       इस परायेपन के शहर में।
        अपनापन मिलेंगा कहीं,
    यें तो बस एक ख़्वाब हैं जहन में।।
       ख़ैर ख़्वाब देखनें का हक हैं,
       उसे छीना जा सकता नहीं।
         वहीं एक ऐसी जगह हैं,
    सुकून छिनने वाला कोई आता नहीं।।
         यहाँ अपनें ही गम देते हैं,
           ये कौंन सा शहर हैं।
      ख़ुद की चाह मुक्कमल करने को,
         अपनों पर बरसता कहर हैं।।
             आँखों में लिए फ़रेब,
             घूमते सब शान से हैं।
        खुदा तेरी ख़ुदाई छिपी कहाँ,
        इंसान यहाँ बस नाम के हैं।।

Tuesday, January 22, 2019

एक प्रयास

ख्वाहिशें पाल रखी हैं,
बहुत सी अपने मन में।
लेकिन संघर्ष भरा है,
हर कदम जीवन में।।
सोचती हूँ कर पाऊँगी पूरा,
सपनों का जो महल बनाया।
क्या दूर कर पाऊँगी,
जो अंधकार जीवन में छाया।।
हर परिस्थिति में रखती हूं,
चेहरें पर एक मुस्कान।
शायद यहीं बन जाये,
मेरी जीत की पहली मुकाम।।
कभी खुद के हार पर,
मैं होतीं नहीं निराश।
गिरती हु तो क्या हुआ,
उठती भी हूँ बार-बार।।
हर पल रहेगा मेरा प्रयास,
पूरी कर पाऊँ सबकी ऑस।
दुनियॉ भरी स्वार्थियों से तो क्या,
मैं न करूँ किसी को निराश।।

Sunday, January 20, 2019

अनकही बातें

दिल के कोने में दफ्न कहीं,
कुछ अनकही सी बातें है।
समझ नही पाती जिसको ,
कौन सी ये ज़ज्बाते हैं।।
पता नहीं कैसा दस्तूर यहाँ,
जो कल पास थे आज दूर है।
रिश्ते कहने को बहुत यहाँ,
पर खुद में सब मसरूफ है।।
खुशी के पल सबकों पता,
गम खुद ही झेल जाती हूँ।
गम भी बता दू किसी को,
ऐसा नहीं कोई पाती हूँ।।
किस पर करूँ यहा भरोसा,
सबके दो-दो चेहरे हैं।
सबके दिल में यहाँ दबे,
राज बहुत ही गहरे हैं।।
मतलब की इस दुनियाँ में,
मतलब के सब यार है।
वक्त चल रहा गर अच्छा,
सब जुड़ने को तैयार हैं।।
बुरा वक्त आने पर,
अपनों ने मुँह फेरा है।
बुरा वक्त ही अपना साथी,
क्योंकि असली उसका चेहरा है।।

Saturday, January 19, 2019

वजूद की तलाश

कौन हूँ मैं?क्या मेरा अस्तित्व है,
क्या मेरे सपने?क्या मेरा भविष्य हैं!
क्यूँ कभी खुद को असहाय सा पाती हूँ।
दूसरो की पसंद से क्यों खुद को सिमटाती हूँ।।
कितना हँसना?,कितना बोलना?,
कहाँ है जाना?,क्या है करना?,
क्यों दूसरे हमें सिखाते है।
अपनी मर्जी को हम पर 
क्यों थोप अधिकार जताते है।।
संसार  की खूबसूरती के लिए,
ईश्वर ने रच दिया लड़की।
लेकिन लोभी इंसानो ने बना दिया,
उसे सबसे बड़ी समस्या जग की।।
हे ईश्वर!इस जग में तू कर ले,
अब से भी सुधार।
अपनी इस सुंदर कृति का
बनवा लिया बहुत मजाक।।
हो सके तो अब से भी,
अपनी सृष्टि में परिवर्तन कर।
यहाँ बसे इंसानो की जगह,
तू सिर्फ इंसानियत भर।।
नहीं तो बना दे हमारे लिए
एक अलग दुनियॉ।
जहाँ सब खुश हो देखकर,
औरों की खुशिया।।
जहाँ पर स्वार्थ ,लालच,
ईर्ष्या ,द्वेष का न हो भाव।
जहाँ पर हर दुख का रहे,
हर युग में अभाव।।
बना दे हमारे लिए,
ऐसी दुनियॉ कोई।
जहाँ फिर से जिये,
हम अपनी जिंदगी खोई।।